Guru Poornima (गुरु पूर्णिमा)

गुरु पूर्णिमा

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं।  यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। यह पूर्णिमा ‘व्यास पूर्णिमा’ के नाम से भी जानी जाती है। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। पूरे भारत में यह पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम  से मनाया जाता है। यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है। इसीलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को व्यास जी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए ।
प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा अर्पण किया करते थे। इस दिन केवल गुरु ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि को भी गुरुतुल्य समझना चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए ।
इस दिन प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएँ और शुद्ध वस्त्र धारण करें और अपने घर से गुरु आश्रम जाकर गुरु की प्रसन्नता के लिए अन्न, वस्त्र और द्रव्य से उनका पूजन करे । उसके उपरान्त ही उन्हें धर्म ग्रन्थ, वेद, शास्त्र तथा अन्य विद्याओं की जानकारी और शिक्षण का प्रशिक्षण मिल पाता था । इस प्रकार श्रद्धा पूर्वक पूजन करने से गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है । गुरु को समर्पित इस पर्व से हमें भी शिक्षा लेते हुए हमें उनकी पूजा करनी चाहिए और उनके प्रति ह्रदय से श्रद्धा रखनी चाहिए । यह पर्व श्रद्धा से मनाना चाहिए, अंधविश्वासों के आधार पर नहीं। गुरु पूजन का मंत्र है –

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥