आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। साल की अनेक पूर्णिमाओं में शरद पूर्णिमा का अलग ही महत्व है | ज्योतिष की मान्यता है कि संपूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा षोडश कलाओं का होता है। वर्षा ऋतू के बाद जाड़े की शुरुआत में शरद की ऋतू की इस पूर्णिमा के दिन चाँद से अमृत बरसता है। इसे ‘रास पूर्णिमा’ भीकहा जाता हैं। इस दिन ‘कोजागर व्रत’ भी माना गया है। इस को ‘कौमुदी व्रत’ भी कहते हैं। इस दिन प्रात: काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसान, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए। इस दिन रात्रि के समय गाय के दूध और चावल की खीर बनाकर चाँद की किरणों के नीचे रख दी जाती है और समझा जाता है की ओस की बूंदों के साथ चाँद से बरसा हुआ अमृत खीर में आ जायेगा | दूसरे दिन उसका भोजन करें तथा सबको उसका प्रसाद दें। विवाह होने के बाद पूर्णिमा के व्रत का नियम शरद पूर्णिमा से लेना चाहिए। यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ, राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है।