MahaShivratri – महाशिवरात्रि

Maha Shivratri

महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। वैसे हर महीने की कृष्‍ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि होती है, पर फाल्गुन मास की कृष्‍ण पक्ष की शिवरात्रि का विशेष महत्व होने के कारण ही उसे महाशिवरात्रि कहा गया है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की शादी हुई थी. जिस कारण  महाशिवरात्रि का धार्मिक महत्व बहुत ज्य़ादा माना जाता है। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के निमित्त व्रत रखा जाता है तथा विशेष पूजा की जाती है।
इस दिन शिवभक्त उपवास रखते हैं और शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाते तथा रात्रि को जागरण करते हैं।

महाशिवरात्रि से संबंधित पौराणिक कथाएँ

महाशिवरात्रि के महत्त्व से संबंधित तीन पौराणिक कथाएँ इस पर्व से जुड़ी हैं:-

मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे| इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार- सृष्टि के पालक भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल पर सृष्टि के सर्जक ब्रह्माजी प्रकट हुए। दोनों में यह विवाद हुआ कि हम दोनों में श्रेष्ठ कौन है? यह विवाद जब बढऩे लगा तो तभी वहां एक अद्भुत ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। उस ज्योतिर्लिंग को वे समझ नहीं सके और उन्होंने उसके छोर का पता लगाने का प्रयास किया, परंतु सफल नहीं हो पाए। दोनों देवताओं के निराश हो जाने पर उस ज्योतिर्लिंग ने अपना परिचय देते हुए कहां कि मैं शिव हूं, मैंनें ही आप दोनों को उत्पन्न किया है| तब विष्णु तथा ब्रह्मा ने भगवान शिव की महत्ता को स्वीकार किया और उसी दिन से शिवलिंग की पूजा की जाने लगा। शिवलिंग का आकार दीपक की लौ की तरह लंबाकार है इसलिए इसे ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। शिव का यह प्राकट्य फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को ही हुआ था। इसलिए इस रात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं।

एक मान्यता यह भी है कि कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। दोनों ने इस दिन गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया था, इसलिए महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है|

एक और मान्यता के अनुसार एक बार मां पार्वती ने शिव से पूछा कि कौन-सा व्रत उनको सर्वोत्तम भक्ति व पुण्य प्रदान कर सकता है? तब शिव ने स्वयं इस शुभ दिन के विषय में बताया था कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी की रात्रि को जो उपवास करता है, वह मुझे प्रसन्न कर लेता है। मैं अभिषेक, वस्त्र, धूप, अर्ध्य तथा पुष्प आदि समर्पण से उतना प्रसन्न नहीं होता, जितना कि व्रत-उपवास से।

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Mantra

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात॥

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