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Chaath Pooja – महापर्व छठ – सूर्य उपासना का पर्व
The ancient Hindu festival dedicated to The Sun God, is also known as Surya Shashti.
छठ पूजा एक धार्मिक पर्व है जो दीपावली के बाद आता है। भक्ति-भाव से इस व्रत को करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति के साथ-साथ धन-धान्य व सुखों की प्राप्ति भी होती है । जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है। यह व्रत पूर्वांचल व बिहार लोगों की आस्था का प्रतीक है। छठ पूजा पूर्वांचल की संस्कृति का अनमोल उपहार है।
पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। सूर्यदेवता को प्रसन्न करने के लिए पारंपरिक गीत गाकर महिलाएं पूजा करती है।
पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है।
इस संदर्भ में ‘देवी भागवत पुराण’ में एक कथा मिलती है। राजा प्रियव्रत विवाह के कई वर्षों बाद भी संतान सुख के लिए तरसते रहे। संतान सुख पाने के लिए इन्होंने सूर्य की उपासना की। सूर्य की कृपा से प्रियव्रत के घर बालक का जन्म हुआ लेकिन जन्म लेते ही बालक की मृत्यु हो गयी। प्रियव्रत बहुत दुःखी हुए। बालक के शव को लेकर श्मशान पहुंचे। श्मशान में बच्चे के मृत शरीर को देखकर प्रियव्रत के अंदर जीने की इच्छा खत्म हो गयी। इसी समय प्रियव्रत के सामने एक देवी प्रकट हुई।
प्रियव्रत ने देवी की पूजा की और मृत बालक को जीवनदान देने की प्रार्थना करने लगे। प्रियव्रत की भक्ति से प्रसन्न होकर देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा कि मैं ब्रह्माजी की मानस पुत्री देवसेना हूं। कुमार कार्तिकेय मेरे पति हैं। मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। देवी ने प्रियव्रत के मृत बालक को पुनर्जीवित कर दिया। जिस दिन प्रियव्रत के मृत बालक को षष्ठी देवी ने जीवित किया वह कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि थी। षष्ठी देवी ने राजा से कहा कि तुम मेरी पूजा करो और अपनी प्रजा से भी मेरी पूजा करने के लिए कहो। इसके बाद राजा प्रियव्रत ने छठ पर्व किया। सूर्य की कृपा से प्राप्त बालक को षष्ठी देवी ने पुनर्जीवन दिया जिससे कार्तिक शुक्ल पष्ठी तिथि को सूर्य को अर्घ्य देकर छठ मैया की पूजा की जाती है।